Wednesday 20 May 2020

कोरोना वायरस: मोदी सरकार भारत को आर्थिक तबाही से बचा पाएगी? (POINT of STRESS) लोकल के लिए वोकल’ कोरोना वायरस से लड़ने का यही है अब मूल मंत्र. (कोरोना वायरस (Coronavirus) के इस दौर में जिस तरह पीएम मोदी (PM Modi) ने राष्ट्र को सम्बोधित किया और जैसे उन्होंने लोकल प्रोडक्ट्स (Local Products) के इस्तेमाल की वकालत की यदि पूरा देश इसे अमली जामा पहना दे तो निश्चित तौर पर हमारी अर्थव्यवस्था (Economy) पटरी पर आ जाएगी)

आत्मनिर्भर भारत ही सबसे सही कदम है हमारे गांव जितने मजबूत होंगेl हमारे गांव, हमारा देश से ,कम लेते हैं और देते बहुत ज्यादा है lभारत का मतलब ही हमारे गांव हैं जो सारे संसाधन हमें उपलब्ध कराते हैंl अन्य(grains)से लेकर,वस्त्र से लेकर,जल संरक्षण भी वही करते हैंlवायु भी वही स्वच्छ है ,दुधारू जानवर भी वही पालते हैं । हमें अब विदेशों पर निर्भरतान पूर्ण रूप से बंद कर देनी चाहिएlमोबाइल हो ,तकनीको या फिर अन्य ,यहां तक कि फल भी देश में पैदा हुए खाना चाहिए, विदेशों का इंपोर्ट बंद करने की कृपा करेंlसेवफल भी विदेशों से आ रहा, यह सोचने की बात lहमारे ही देश के सेब फल और अनन चाहे ,वह जैसे भी हो ,(हमें तो वही चाहिए )दूध भी हमें हमारे देसी गाय और भैंस ही अति प्रिय आज अगर हमारे गांव को छोड़ कर ,हमने विदेशों की चीज खाना या इस्तेमाल करना जारी रखा तो वह गलत होगा । कृपया निवेदन है विदेशों से इंपोर्ट अति आवश्यक वस्तुओं को छोड़कर बंद किया जाएlपेट्रोल का इस्तेमाल कम से कम किया जाए।

श्रीकृष्ण ग्रामीण संस्कृति के पोषक बने हैं। उन्होंने अपने समय में गायों को अभूतपूर्व सम्मान दिया। वे गायों एवं ग्वालों के स्वास्थ्य, उनके खान-पान को लेकर सजग हैं। उन्होंने जहां ग्वालों की मेहनत से निकाला गया माखन और दूध-दही को स्वास्थ्य रक्षक के रूप में प्रतिष्ठित किया वही इन अमूल्य चीजों को ‘कर’ के रूप में कंस को देने से रोका। वे चाहते थे कि इन चीजों का उपभोग गांवों में ही हो। श्रीकृष्ण का माखनचोर वाला रूप दरअसल निरंकुश सत्ता को सीधे चुनौती तो था ही, लेकिन साथ ही साथ ग्रामीण संस्कृति को प्रोत्साहन देना भी था।

लोकल के लिए वोकल’ कोरोना वायरस से लड़ने का यही है अब मूल मंत्र

कोरोना वायरस (Coronavirus) के इस दौर में जिस तरह पीएम मोदी (PM Modi) ने राष्ट्र को सम्बोधित किया और जैसे उन्होंने लोकल प्रोडक्ट्स (Local Products) के इस्तेमाल की वकालत की यदि पूरा देश इसे अमली जामा पहना दे तो निश्चित तौर पर हमारी अर्थव्यवस्था (Economy) पटरी पर आ जाएगी.

कोरोना (Coronavirus Pandemic) जैसी महामारी ने देश और दुनिया के अधिकतर देशों को अपनी चपेट में ले लिया है. उसके असर इन सभी देशों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति में भी देखने को मिल रहे हैं. भारत में इसके असर यहां की विविधतता और ग्रामीण शहरी व्यवस्था में रहने वालों नागरिकों के संदर्भ में अन्य देशों से काफ़ी अलग हैं. ऐसे में हमें भारत की विविधता और सांस्कृतिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए कोविड 19 से फैली महामारी से लड़ना है. इससे लड़ते हुए लोकल से वोकल होने की जो बात माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी (PM Modi) ने कही है वह भारत की सामाजिक अवधारणा में वर्षों से रही है. उदारीकरण और बढ़ते वैश्विक अर्थव्यवस्था के दवाब में उस पर कभी ध्यान ना सरकारों द्वारा दिया गया न ही नागरिकों ने इसे समझा. अब जब दुनिया के सामने एक संकट खड़ा है तो उसे वह सब अवधारणा याद आने लगी है जिसे कभी वो समझते हुए दरकिनार करता रहा है.

महात्मा गांधी ने गांव में रहकर आत्मनिर्भर रहने का मूल मंत्र अपने सम्पूर्ण जीवन काल में दिया. आज अगर गांधी दर्शन पर ग़ौर किया जाए तो स्वदेशी अपनाओं ले लेकर स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनने पर ज़ोर दिखेगा. वही आज के समय की ज़रूरत है. उदाहरण से समझे तो पाएंगे कि आज जब पूरे देश में पूर्ण बंदी है तब हमें अपने ज़रूरत के समान की चिंता होने लगी है. 24 घंटे में प्रयोग किए जाने वाले हरेक समान की उपयोगिता महसूस होने लगी है.


कोरोना वायरस: मोदी सरकार भारत को आर्थिक तबाही से बचा पाएगी?

साधारण शब्दों में इसका मतलब ये हुआ कि करोड़ों लोग फिर से ग़रीबी रेखा के नीचे चले जाएंगे. ग़रीब किसानों और मज़दूरों की जेब में पैसे नहीं होंगे. मध्यम वर्ग के लाखों लोगों की या तो नौकरियां जा चुकी होंगी या उनके वेतन कम हो चुके होंगे.

बड़े व्यापारी बैंकों के क़र्ज़ों के नीचे दबे होंगे और उद्योगपतियों की कंपनियों की क़ीमत काफ़ी गिर चुकी होगी.

 135 करोड़ जनता के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह सा लगll


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